म्हैं आज
थाहरै मांय पिघळ रियौ हूँ जियां
थूं सदियाँ सू बेती आई लावा री नद ही
अर आज म्हनै देख’र ढबगी
म्हैं आज
कीं नीं हुता आंतर ई घणों ई हूँ
म्हारी पैछाण ढळ’री है
टौपा-टौपा थारै मांय
म्हैं आज परबस नीं हूँ
ना ई थूँ परबस है
जिकौ कीं हु'रियौ है
बो कुदरती है
पराथमिकता सूं
पूरणता रे कानी री जातरा
म्हैं आज कीं नी सोचूँ
थूँ भी मत सोच कीं
या खाली आपांणी वजूद री कहाणी नीं है
औ बो साँच है जिकौ परम ततव सिव-सिवा है
2
लोइ,माटी, हाडका ऊँ बिणयोड़ी
म्हारी आतमा दिब्य ततव रौ अंस है
म्हारौ कीं नि है
जिण दिन जाणगी
खतम हु जाइ बजूद
फ़ैर बी
मिनखपणों मुसकल रै समै
मिनखां ने इज खाय जावै
ईयान क्यूँ हुवै
जद कुदरत रो कैहर हुवै
तद मिनखपणां रै नाम माथै
कीं लौग बण जावै हैवान
अर कीं मसीआ
सेना रा जवान आपरी जान माथै
खैळण लाग रिया है
पण मिनखपणां नै जीवतौ राख मैलयौ है
बै खुद मीसाल बणग्या
मसाल बणग्या
अर कई जिंदगाणीयाँ नै
अँधारा मुं खैंच’र
नयौ उजास दियौ
सौगात मांय दी जिंदगाणी
मूळ रचनाकार पंकज त्रिवेदी
उथळो आशा पाण्डेय ओझा
बधाई पंकज त्रिवेदी जी . आपकी दो रचनाएँ अन्य भाषा (राजस्थानी में ) ब्लॉग पर
जवाब देंहटाएंप्रकाशित हुईं . बधाई आशा पाण्डेय ओझा जी . आपने गुजरात के ख्यातिमान कवि ,
कथाकार ,लेखक की रचनाओं का अनुवाद कर उन्हें अपने ब्लॉग पर सजाया है...