राजस्थानी भासा नै बचावण री जुगत मांय अैक प्रयास ,चिरमी

गुरुवार, 25 सितंबर 2014

ब्रिजेश नीरज जी री सात कवितावां रो राजस्थानी मायं उथळो









ब्रिजेश नीरज जी री सात कवितावां रो राजस्थानी मायं 

 उथळो

पैली

तझड़ मांय
रूंखा सूं झरणों पातां रो
नुवा बौर सूं लद्योड़ा
झाड़कां रो झूमणों
फागण री मस्ती
बयार री रमझौळ
सिंझ्या री ठाडक
सैंग
पैला जियां इज  है
पण सगै थूँ कोनी

दूजी

सूरज उग्यौ आँथ्यौ
पण हरैक साँस सागै उतरियौ
आँख्यां मांय सिंझ्या रो धुँधळको
गरमी अर उमस
सियाळै री हाडतौड़ कंपकंपावट
ढबयौडौ हुवै बायरौ
फैर बी कानां मांय गूंजै
सांय-सांय रो हाकौ
झाड्काँ रो उगणौ
रूंखा सूं पाताँ रो झड़णौ
खुंजिया मांय भैळा हुवता
सवाल-बीज
जीकांनै अैक-अैक कर’र
कई दांण  बौया
पण बिरखा बी तौ हुणी जौईजै
जमीं बिंजर हु री है लगातार

 तीजी

अैक टूटियौड़ी ड़ाळी
जड़ाँ सूं अळगी
कीं हरौपण है अजै तांई
कुँपळां  फूट सकै है
पणप सकै है जड़ां
जमीं सोधूँ हूँ

चौथी

समै सूं म्हारौ साथ 

कदै निभ नीं  सकियौ

बो आगै भाजतौ रियौ

अर म्है उण नै पकड़ण री जुगत मांय

रियौ बोखळीजियौड़ौ

पुंणच माथै बंधियौड़ी

हाथ घड़ी री सुईयां रै सारे

बीने बाँध राखण रौ

भरम पाळियां कईदांण

भरभरा 'र हैटो पड्यौ

उथळ-पुथळ डाफ़ाचूक रे बीचै

सेवट टूटगी अैक दिन

हाथघड़ी

अबै पूणच माथै

रैग्यो खाली अैक सेनांण

यौ अैसास करावै है क

समै घणों आगै निकळ ग्यौ


    पाँचवी

चाऊँ तो म्हे भी हूँ 

तोड़ लावणां आभै सूं तारा 

थाहरै वास्तै

पण कांई करूं

म्हारौ कद औछो

अर हाथ नाह्ना'क

   छह


तपता दिनां रै पछै

ठंडा बायरा रो मौसम

कदे सूं नीं बरसी बिरखा 

घणां सारा सुपना सूखग्या
     
      
     सात

उपराणै आभौ

हैठे भौम

बिचाुळ मांय म्है

अैकलौ


मूळ रचनाकार  ब्रिजेश नीरज 

उथळो -आशा पाण्डेय ओझा 


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