ब्रिजेश नीरज जी री सात कवितावां रो राजस्थानी मायं
उथळो
उथळो
पैली
पतझड़ मांय
रूंखा सूं झरणों पातां रो
नुवा बौर सूं लद्योड़ा
झाड़कां रो झूमणों
फागण री मस्ती
बयार री रमझौळ
सिंझ्या री ठाडक
सैंग
पैला जियां इज है
पण सगै थूँ कोनी
सूरज उग्यौ आँथ्यौ
पण हरैक साँस सागै उतरियौ
आँख्यां मांय सिंझ्या रो धुँधळको
गरमी अर उमस
सियाळै री हाडतौड़ कंपकंपावट
ढबयौडौ हुवै बायरौ
फैर बी कानां मांय गूंजै
सांय-सांय रो हाकौ
झाड्काँ रो उगणौ
रूंखा सूं पाताँ रो झड़णौ
खुंजिया मांय भैळा हुवता
सवाल-बीज
जीकांनै अैक-अैक कर’र
कई दांण बौया
पण बिरखा बी तौ हुणी जौईजै
जमीं बिंजर हु री है लगातार
तीजी
अैक टूटियौड़ी ड़ाळी
जड़ाँ सूं अळगी
कीं हरौपण है अजै तांई
कुँपळां फूट सकै है
पणप सकै है जड़ां
जमीं सोधूँ हूँ
चौथी
समै सूं म्हारौ साथ
कदै निभ नीं सकियौ
बो आगै भाजतौ रियौ
अर म्है उण नै पकड़ण री जुगत मांय
रियौ बोखळीजियौड़ौ
पुंणच माथै बंधियौड़ी
हाथ घड़ी री सुईयां रै सारे
बीने बाँध राखण रौ
भरम पाळियां कईदांण
भरभरा 'र हैटो पड्यौ
उथळ-पुथळ डाफ़ाचूक रे बीचै
सेवट टूटगी अैक दिन
हाथघड़ी
अबै पूणच माथै
रैग्यो खाली अैक सेनांण
यौ अैसास करावै है क
समै घणों आगै निकळ ग्यौ
पाँचवी
चाऊँ तो म्हे भी हूँ
तोड़ लावणां आभै सूं तारा
थाहरै वास्तै
पण कांई करूं
म्हारौ कद औछो
अर हाथ नाह्ना'क
छह
तपता दिनां रै पछै
ठंडा बायरा रो मौसम
कदे सूं नीं बरसी बिरखा
घणां सारा सुपना सूखग्या
सात
उपराणै आभौ
हैठे भौम
बिचाुळ मांय म्है
अैकलौ
मूळ रचनाकार ब्रिजेश नीरज
उथळो -आशा पाण्डेय ओझा
इस सम्मान के लिए आपका हार्दिक आभार!
जवाब देंहटाएंउत्तम अनुवाद
जवाब देंहटाएंमेरी तरफ से आपका तह दिल से हार्दिक आभार हैँ।
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