अशोक आंद्रे जी री कवितावां रो राजस्थानी में उथळो
"सुपना " अशोक आंद्रे
किता सुपना लैवे है मिनख
सगळा नाता
सुपना रे नैड़ा
झिलमिलावै बीरा
कैवे है क सुपना
ऊपर आसमां ऊँ आवै
पण मिनख जावै परो अैक दिन
अर सुपना हैटा इ रे जावै
आखिर अै सुपना सागै क्यूं कोनी चालै
उणां सुपनां रो कांई करां जिका
लारै रे जावै
क्यांकी बै तो सर॒वनाम बण 'र जीवण लागै
औ घणौं उँडौ हुवै
जूण री जड़ां बिचै
बणाय लैवे आपरो ठायौ
2 दरद
दरद घणौं गैरो हुवै
समुदर् नापिज॒यौ जा सकै
आभै नै बी परकास बरस सूँ
जोड़ियो जा सकै
पण दरद
उण री थाह कोनी हुवै
उण री डूब रो कोई आदार नीं मलै
जदी तो मिनख
उण नै ढाबण री कोसिस मांय
आखी उमर
उण री गैराइ मांय
गोता लगावतो रेवै
मूळ रचनाकार अशोक आंद्रे उथळो आशा पाण्डेय ओझा
"सुपना " अशोक आंद्रे
किता सुपना लैवे है मिनख
सगळा नाता
सुपना रे नैड़ा
झिलमिलावै बीरा
कैवे है क सुपना
ऊपर आसमां ऊँ आवै
पण मिनख जावै परो अैक दिन
अर सुपना हैटा इ रे जावै
आखिर अै सुपना सागै क्यूं कोनी चालै
उणां सुपनां रो कांई करां जिका
लारै रे जावै
क्यांकी बै तो सर॒वनाम बण 'र जीवण लागै
औ घणौं उँडौ हुवै
जूण री जड़ां बिचै
बणाय लैवे आपरो ठायौ
2 दरद
दरद घणौं गैरो हुवै
समुदर् नापिज॒यौ जा सकै
आभै नै बी परकास बरस सूँ
जोड़ियो जा सकै
पण दरद
उण री थाह कोनी हुवै
उण री डूब रो कोई आदार नीं मलै
जदी तो मिनख
उण नै ढाबण री कोसिस मांय
आखी उमर
उण री गैराइ मांय
गोता लगावतो रेवै
मूळ रचनाकार अशोक आंद्रे उथळो आशा पाण्डेय ओझा
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