राजस्थानी भासा नै बचावण री जुगत मांय अैक प्रयास ,चिरमी

गुरुवार, 23 अप्रैल 2015

मूळ कवि दरश वीर संधू उल्थौ आशा पाण्डेय ओझा



4
मूळ कवि दरश वीर संधू उल्थौ आशा पाण्डेय ओझा
1
उपराड़े  पूग'
बिने लागो '
दुनिया कतरी
नाह्नी सी रैगी
बी दिन सूं
खुदरो कद
पूठ माथै
लाद्याँ फिरै बो


2
कीं वादा पाक गिया  है
उच्छासां रे  जोर सूं
टूटता ही हुसी
दोय घड़ी ढब जा
बिछडीयां ऊँ पैली
सुण मैल्यो है'
मौसमी फळ
चौखा रैवे
लाम्बा गैला मायं



3
आव
बूकभर पाणी पिजा
तिरस  हथेिळयां री
अब लकीरां बिपदा री
मोताज नीं
उगेला लोई
फावड़ो बण'
भाकरां नै
मारग करण तांई


4
ठैराव
भरम है
ढबे
कीं कोनी
हाँ
कीड़ो लाग जा
बहाव मांय
एक मियाद पछे
क्यूं जूणा री बातां करो


मूळ कवि दरश वीर संधू
उल्थो आशा पाण्डेय ओझा
मूळ कवि दरश वीर संधूउल्थो आशा पाण्डेय ओझा
परिचै :-दरशवीर  संधू :-जलम १४ जुलाई ललित कला मायं डिग्री  कैलीफोर्नियारे सिएरा नेवाडा पहाड़ाँ बीचे रैवास मे अर कारोबार खाली समै मांय कवितालिखे अर ग्राफ़िक कला मायं सिद्ध हाथ , हिंदी अर पंजाबी दोई भाषावां लिखेनरी ऑनलाइन पत्रिकावां 












रविवार, 26 अक्तूबर 2014

पंकज त्रिवेदी जी री दोय रचनावां रो राजस्थानी मांय उथळो

पंकज त्रिवेदी जी री दोय रचनावां रो राजस्थानी मांय उथळो

म्हैं आज
थाहरै मांय पिघळ रियौ हूँ जियां
थूं सदियाँ सू बेती आई लावा री नद ही
अर आज म्हनै देख’र ढबगी
म्हैं आज
कीं नीं हुता आंतर ई घणों ई हूँ
म्हारी पैछाण ढळ’री है
टौपा-टौपा थारै मांय 
म्हैं आज परबस नीं हूँ
ना ई थूँ परबस है
जिकौ कीं हु'रियौ है 
बो कुदरती है
पराथमिकता सूं 
पूरणता रे कानी री जातरा 
म्हैं आज कीं नी सोचूँ 
थूँ  भी मत सोच कीं 
या खाली आपांणी वजूद री कहाणी नीं है 
औ बो साँच है जिकौ परम ततव सिव-सिवा है 

2

लोइ,माटी, हाडका ऊँ बिणयोड़ी
म्हारी आतमा दिब्य ततव रौ अंस है
म्हारौ कीं नि है
जिण दिन जाणगी
खतम हु जाइ बजूद
फ़ैर बी
मिनखपणों मुसकल रै समै
मिनखां ने इज खाय जावै
ईयान क्यूँ हुवै
जद कुदरत रो कैहर हुवै
तद मिनखपणां रै नाम माथै
कीं लौग बण जावै हैवान
अर कीं मसीआ
सेना रा जवान आपरी जान माथै
खैळण लाग रिया है
पण मिनखपणां नै जीवतौ राख मैलयौ है
बै खुद मीसाल बणग्या
मसाल बणग्या
अर कई जिंदगाणीयाँ नै
अँधारा मुं खैंच’र
नयौ उजास दियौ
सौगात मांय दी जिंदगाणी

मूळ रचनाकार पंकज त्रिवेदी 
उथळो आशा पाण्डेय ओझा 


शनिवार, 27 सितंबर 2014

अशोक आंद्रे जी री कवितावां रो राजस्थानी में उथळो

अशोक आंद्रे जी री कवितावां रो राजस्थानी में उथळो

"सुपना " अशोक आंद्रे




किता सुपना लैवे है मिनख

सगळा नाता
सुपना रे नैड़ा
झिलमिलावै बीरा
कैवे है क सुपना
ऊपर आसमां ऊँ आवै
पण मिनख जावै परो अैक दिन
अर सुपना हैटा इ रे जावै
आखिर अै सुपना सागै क्यूं कोनी चालै
उणां सुपनां रो कांई करां जिका
लारै रे जावै
क्यांकी बै तो सर॒वनाम बण 'र जीवण लागै
औ घणौं उँडौ हुवै
जूण री जड़ां बिचै
 बणाय लैवे आपरो ठायौ


2 दरद


दरद घणौं गैरो हुवै

समुदर् नापिज॒यौ जा सकै
आभै नै बी परकास बरस सूँ
जोड़ियो जा सकै
पण दरद
उण री थाह कोनी हुवै
उण री डूब रो कोई आदार नीं मलै
जदी तो मिनख
उण नै ढाबण री कोसिस मांय
आखी उमर
उण री गैराइ मांय
गोता लगावतो रेवै
मूळ रचनाकार अशोक आंद्रे  उथळो आशा पाण्डेय ओझा 

गुरुवार, 25 सितंबर 2014

ब्रिजेश नीरज जी री सात कवितावां रो राजस्थानी मायं उथळो









ब्रिजेश नीरज जी री सात कवितावां रो राजस्थानी मायं 

 उथळो

पैली

तझड़ मांय
रूंखा सूं झरणों पातां रो
नुवा बौर सूं लद्योड़ा
झाड़कां रो झूमणों
फागण री मस्ती
बयार री रमझौळ
सिंझ्या री ठाडक
सैंग
पैला जियां इज  है
पण सगै थूँ कोनी

दूजी

सूरज उग्यौ आँथ्यौ
पण हरैक साँस सागै उतरियौ
आँख्यां मांय सिंझ्या रो धुँधळको
गरमी अर उमस
सियाळै री हाडतौड़ कंपकंपावट
ढबयौडौ हुवै बायरौ
फैर बी कानां मांय गूंजै
सांय-सांय रो हाकौ
झाड्काँ रो उगणौ
रूंखा सूं पाताँ रो झड़णौ
खुंजिया मांय भैळा हुवता
सवाल-बीज
जीकांनै अैक-अैक कर’र
कई दांण  बौया
पण बिरखा बी तौ हुणी जौईजै
जमीं बिंजर हु री है लगातार

 तीजी

अैक टूटियौड़ी ड़ाळी
जड़ाँ सूं अळगी
कीं हरौपण है अजै तांई
कुँपळां  फूट सकै है
पणप सकै है जड़ां
जमीं सोधूँ हूँ

चौथी

समै सूं म्हारौ साथ 

कदै निभ नीं  सकियौ

बो आगै भाजतौ रियौ

अर म्है उण नै पकड़ण री जुगत मांय

रियौ बोखळीजियौड़ौ

पुंणच माथै बंधियौड़ी

हाथ घड़ी री सुईयां रै सारे

बीने बाँध राखण रौ

भरम पाळियां कईदांण

भरभरा 'र हैटो पड्यौ

उथळ-पुथळ डाफ़ाचूक रे बीचै

सेवट टूटगी अैक दिन

हाथघड़ी

अबै पूणच माथै

रैग्यो खाली अैक सेनांण

यौ अैसास करावै है क

समै घणों आगै निकळ ग्यौ


    पाँचवी

चाऊँ तो म्हे भी हूँ 

तोड़ लावणां आभै सूं तारा 

थाहरै वास्तै

पण कांई करूं

म्हारौ कद औछो

अर हाथ नाह्ना'क

   छह


तपता दिनां रै पछै

ठंडा बायरा रो मौसम

कदे सूं नीं बरसी बिरखा 

घणां सारा सुपना सूखग्या
     
      
     सात

उपराणै आभौ

हैठे भौम

बिचाुळ मांय म्है

अैकलौ


मूळ रचनाकार  ब्रिजेश नीरज 

उथळो -आशा पाण्डेय ओझा